Draft version – कच्चा संस्करण 15.1.2017
सन 1988 में मैं एक इंजीनियर के रूप में नौकरी का इंटरव्यू दे रहा था. CNC मशीनें बनानेवाली इस कंपनी के जनरल मेनेजर ने मेरा परिचय कुछ लोगों से करवाया- विशेषकर डिज़ाइन इंजीनीरों से.. उनमेसे एक सज्जन के काम से मैं बहुत प्रभावित हुआ- उनकी डिजाईन एकदम साफ़, बहुत अच्छे विचार, मशीनों को बनाने में लगाए, दिखे. मैंने बातों बातों में उनसे पूछा, कि इतना हुनर होते हुए आप इस छोटी कम्पनी में क्यों हैं? क्या आपने किसी बड़ी कम्पनी में काम करने की कोशिश की? उन सज्जन की आँखों में नमी आ गयी, वे बोले, “मैं अंग्रेजी अच्छी नहीं बोल पाता, इंटरव्यू कॉल ही नहीं मिलता है-मेरा काम दिखने का मौका ही नहीं मिलता है.” उस दिन मुझे लगा, कि एक होनहार इंजीनियर भाषा की कमी के कारण आगे नहीं बढ़ पा रहा और, एक व्यवस्था अपने ही लोगों को अपनी भाषा में काम करने और आगे बढ़ने का रास्ता रोक रही है.
हालत आज तक बहुत नहीं बदली है. अंग्रेजी का ज्ञान न हो, तो न केवल आप आगे नही बढ़ते, कइयों के लिये तो अंग्रेजी न आने का मतलब है की वो इंजीनियरिंग, बिज़नस या मेडिकल की उच्च शिक्षा ही नहीं पा सकते. अगले कुछ पन्नों में, मैं ये बात पेश करना चाहूंगा की हमें भारत में अपनी भाषाओँ में व्यवसायिक उच्च शिक्षा मिलना चाहिये। एक विद्यार्थी को स्थानीय भाषाओँ में इंजीनियर, बिज़नेस या डॉक्टरी की पढाई करना संभव होना आवश्यक है. जो लोग अंग्रेजी में पढ़ना चाहते हों वे बेशक पढ़ें, पर उसके अलावा, हिंदी और दूसरी स्थानीय भाषाओँ में इंजीनियरिंग, बिज़नेस और मेडिकल की पढाई उपलब्ध होनाज़रूरी है इससे कई होनहार लोग आसानी से एक नया पेशा सीख पायेंगे और देश में ज्ञान को बढ़ावा मिलेगा, लोगों का जीवन स्तर बढ़ेगा और समाज और आगे बढ़ेगा.
भाषा ही मनुष्य को अन्य प्राणियों से ऊपर उठने में मदद करती है. हम भाषा के माध्यम से ही ज्ञान का निर्माण और प्रसार करते हैं. प्रकृति के नियमों की खोज और मनुष्य के अविष्कारों के लिए आवश्यक माध्यम भाषा है. और उन गतिविधियों को कर पाने के लिए जिस ज्ञान की नींव लगाती है, वो भाषा के माध्यम से ही हासिल हो सकता है. अविष्कारों पर आधारित नये (औद्योगिक और उपभोक्ता) उत्पादों को बड़ी मात्रा में बनाने और उनको बेचने का काम बड़ी कम्पनियां करती हैं. समाज का सारा कारोबार – सेवाओं या उत्पादों (या वस्तुओं) का निर्माण, उत्पादन, बिक्री और उनकी मरम्मत इन सबका माध्यम भाषा ही है. हमारे समाज में बोली की भाषा एक, और पढाई की कोई और ऐसी विचित्र स्थिति है.
आज हम सब ये मानते हैं की एक इंजीनियर या डॉक्टर बनने के लिए अंग्रेज़ी पर प्रभुत्व ज़रूरी है. एक इंजीनियर और बिजनेसमैन के नाते, जो पिछले ३३ वर्षों से यूरोप और अमरीका में रह रहा है, और ६ भाषाएं जानता है, मैं अर्ज़ करता हूँ, की भारतीयों को व्यवसयिक ज्ञान उनकी अपनी भाषा में पाना संभव होना चाहिये। संसार में कोई भी प्रगत देश अपने नागरिकों को ज्ञानप्राप्ति की पहली शर्त एक विदेशी भाषा नहीं बनाता है. उल्टा व्यवसायिक ज्ञान अपनी भाषा में, आसानी से सीखकर लोग अच्छे प्रोफेशनल बनते हैं. उनमे से कई उसके साथ साथ अंग्रेजी सीखकर अपना दायरा बढ़ाते हैं.
आइये पहले ये देखें की हमारे यहाँ इंजीनियरिंग, बिज़नेस या मेडिकल की उच्च शिक्षा अंग्रेजी में ही क्यों है. (इस लेख में,आगे मैं “इंजीनियरिंग, बिज़नेस या मेडिकल की उच्च शिक्षा” को सिर्फ “उच्च शिक्षा” कह कर पुकारूँगा; बिजनेसमैन शब्द दोनों पुरुषों और महिलाओं के लिए इस्तेमाल कर रहा हूँ). आधुनिक भारतीय संस्कृति अंग्रेजी राज और उसके बाद के आज़ाद भारत के प्रयासों का नतीजा है. बेशक आज का आधुनिक विश्व समाज मोटे तौर पर यूरोपीय सभ्यता और संस्कृति पर आधारित है. इस संस्कृति से हमारा परिचय हमारी पराधीनता के कारण और उसके दौरान हुआ. अंग्रेजों को सिर्फ़ उनके फ़ायदे का विचार था, भारत की जनता का जागरण और उद्धार उनकी शिक्षा प्रणाली का उद्देश्य नहीं था. उसका उद्देश्य था बाबू और अफ़सर तैयार करना जो अंग्रेज़ी साम्राज्य को चलाने में हाथ बटायें। आज़ादी के बाद हमारी ग़रीबी, विश्व में सिर्फ़ ज़िंदा रहने की हमारी ज़रूरत और प्रगति की जल्दी, शायद इन कारणों से हम उच्च शिक्षा को अंग्रेजी में हुए हैं. बेशक अंग्रेजी में पढ़ने से हमारी अर्थ व्यवस्था को फायदा मिला है- हमें वो तकनीकी, बिज़नेस और मेडिकल ज्ञान मिला, जिसको तैयार करने में कई सदियाँ लग गईं. पर वो ज्ञान आज भी बहुत कम भारतीय लोगों तक ही सीमित है – एक तरह से वो अंग्रेजी रूपी पिंजरे में कैद है, और हमारी आम जनता उसको पाने के लिये उतावली है.
आज देश की १०-१५ प्रतिशत जनता ही आसानी से अंग्रेजी लिख और बोल सकती है. पर उपरोक्त उच्च शिक्षा सिर्फ उस भाषा में सीमित है. यदि हम हिंदी, बंगाली, तेलगु, मराठी और तमिल में पढ़ायें तो ८६ (86) करोड़ और लोग अपनी भाषा में सीख सकेंगे- और उनमे ४२ (42 ) करोड़ २१ वर्ष की आयु से कम हैं . उर्दू, कन्नड़, गुजराती, ओड़िया और मल्यालम जोड़ दें तो १०० (100) करोड़ लोग अपनी बोली में आधुनिक ज्ञान पा सकेंगे-उनमे ६० (60) करोड़ २१ वर्ष की आयु से कम हैं . हमारे देश के इतिहास में आज वो मोड़ आ गया है, जब आम लोग, उनकी अपनी भाषा में आधुनिक ज्ञान पाना चाहतें हैं और वो उनको काफी आसानी से उपलब्ध कराया जा सकता है. आवश्यकता है राजनितिक इच्छाशक्ति, मेहनत, पूँजी और विचारबदल की.
आइये पहले अपनी अर्थ व्यवस्था पर थोड़ा गौर करें और फिर बुनियादी उच्च शिक्षा पर. बहुत पहुँचे हुए कामों के लिए, जैसे उच्च श्रेणी के अनुसंधान आदि के लिए, बेशक अंग्रेजी बहुत ज़रूरी होगी. पर इंजीनियर या डॉक्टर बनने के लिए अंग्रेजी न आना हमारे लिए रोड़ा नहीं होना चाहिये।
अर्थ व्यवस्था की सरल परिभाषा है- सेवाओं और उत्पादों का निर्माण, उनका उत्पादन और उसकी ख़रीद फ़रोख़्त। कंपनियों का काम है नए उत्पाद डिज़ाइन करना, कच्चा माल ख़रीदना और बड़े पैमाने पर उसको उत्पाद में बदलना। और, इसके लिए इंजीनियरिंग और बिज़नेस के ज्ञान की आवश्यकता है. ये सारा ज्ञान हमारी भाषाओँ में सीखा जा सकता है. अपनी बोली में नए हुनर सीखकर ज़्यादा लोग अच्छे उत्पाद तैयार करके निर्यात कर सकते हैं। बेशक, निर्यात के लिए, उच्च श्रेणी के अनुसंधान के लिए, अंग्रेजी हमारे लिए महत्वपूर्ण बनी रहेगी. उससे हमें कोई विरोध नहीं है. इच्छा है तो ये, की उसके साथ-साथ सामान्य लोग अपनी मातृभाषा में लोग आधुनिक ज्ञान पा सकें और उसका उपयोग करके ज़्यादा उत्पादक (प्रोडक्टिव) बन सकें।
डॉक्टर का पेशा एक ख़ास अहमियत रखता है. और डॉक्टर एक बहुत ज़रूरी सेवा समाज को देते हैं. मेडिकल की पढाई भी आज तक सिर्फ अंग्रेजी में सम्भव है. ऐसा क्यों? रुसी, जर्मन, चीनी, जापानी डॉक्टर तो अपनी भाषा में पढ़ लेते हैं और काफी उच्च श्रेणी का अनुसन्धान भी अपनी ही भाषा की बुनियाद पर करते हैं। यही नहीं, हममें से कुछ भारतीय लोग इन देशों में जाकर, उनकी भाषा सीखकर, उसका इस्तेमाल करके डॉक्टरी का पेशा सीखते हैं. मेरा मानना है, कि हम भी, काफ़ी मेहनत के बाद, अपनी भाषाओँ में मेडिकल ज्ञान सीख और सीखा सकते हैं. जाहिर है कि इस पढाई में कई लैटिन और अंग्रेजी शब्द होते हैं, और क्यों न हों? उन्हें हम ज्यों के त्यों इस्तेमाल कर सकते हैं. परन्तु पढाई का माध्यम हमारी भाषा हो सकती है. सारी शिक्षा सामग्री को पढ़ाने के लिए – कम्प्यूटर बेस्ड ट्रेनिंग और कंप्यूटर बेस्ड असेसमेंट का इस्तेमाल किया जा सकता है, ताकि शिक्षा का दर्जा ऊँचा रहे.
इस दृष्टी को साकार करने के लिये हमें क्या करना होगा? मेरे विचार में निम्न चार काम:
१. सरकारी और प्राइवेट सेक्टर की इच्छा शक्ति को बुलंद करना
२. पुस्तकों और अन्य शिक्षा सामग्री- content – का हमारी भाषाओँ में अनुवाद
३ प्रोफेसरों की ट्रेनिंग – आज तक वे सब अंग्रेजी में पढ़े हैं और उन्होंने अंग्रेजी में पढ़ाया है- इस बदलाव या इस व्रुद्धि के लिए ख़ास ट्रेनिंग आवश्यक है
४ समाज की मान्यता- हमारी भाषाओँ में पढ़े लोगों की क्षमता को मानने में समाज को समय लगेगा
आइये इन पर थोड़ा गौर करें.
१. सरकारी और प्राइवेट सेक्टर की इच्छा शक्ति:
एक सच्चे जनतंत्र में आम व्यक्ति की भाषा में पढाई उपलब्ध कराना राजनेताओं के हित में होगा. वो इसका समर्थन करेंगे ऐसी अपेक्षा तो है. इसके लिए उन्हें अपनी खुदी को बुलंद करना होगा, साथ ही उन्हें इस शिक्षा का ऊँचा दर्जा सुनिश्चित करना होगा और उसकी शान बुलंद करनी होगी
२. पुस्तकें और अन्य शिक्षा सामग्री- content – का हमारी भाषाओँ में अनुवाद:
शुरुआत में ये काम बहुत समय, पूँजी और संयम मांगेगा, पर ज्ञान को फ़ैलाने के लिए ये सबसे आवश्यक कदम है. वैसे भी टेक्नोलॉजी और Google Translate जैसे उपकरणों से ये काम आसान होगा और उसे फैलाना आज कहीं आसान है. ज़रा सोचिये, ७० साल पहले ये काम शायद इतना आसान नहीं था, पर आज तक्नोलोजी के कारण कहीं आसान हो गया है.
३. प्रोफेसरों की ट्रेनिंग:
पहले पहले शायद ये बदलाव भी बहुत कठिन लग सकता है. आखिर आज के सारे प्रोफेसर अंग्रेजी में ही तो पढ़े हैं – शायद हमारी भाषाओँ में पढ़ना पढ़ाना उन्हें अपनी औकात से नीचा लग सकता है. एक ज़माना था जब अँगरेज़ हमसे कहते थे की हम किसी काबिल नहीं हैं और हम वो मान बैठे थे. ये भी वैसा ही बदल है, हमें खुद विश्वास करना होगा, कि हम अपनी भाषा में आधुनिक ज्ञान सीख और सीखा सकते हैं…
४. समाज की मान्यता- हमारी भाषाओँ में पढ़े लोगों की क्षमता को मानने में समाज को समय लगेगा
हमारी मानसिकता अब तक यही है, की कोई वस्तु विदेशी हो देसी वस्तुओं से बेहतर है. या ज्ञान यदि अंग्रेजी में पढ़ाया जाये तो वो हमारी भाषा में सीखे ज्ञान से बेहतर होता है. और सचमुच, आज की तरीके उच्च श्रेणी का ज्ञान, विज्ञान, तक्नोलोजि, या मेडिकल विषयों पर सिर्फ अंग्रेजी में ही उपलब्ध है. पर उसका अनुवाद हो सकता है, और होना चाहिए. हमारी भाषाओँ में आने से वो ज्ञान कम से कम ६-८ गुना लोगों तक पहुँच सकता है. तो हिंदी में पढ़े इंजीनियर, डॉक्टर और बिजनेसमैन और बिज़नस वीमेन शुरुआत में थोड़े शक से देखे जायेंगे- उन्हें खुद को साबित करना होगा… पर जैसे भारत को आज़ादी के बाद एक नया आत्मविश्वास आया- और हमने मार्स पर मिशन भेजा, हवाई जहाज बनाये, दुनिया में अपना नाम रोशन किया, हम ये भी कर दिखाएंगे – और सबसे पहले चौंका देंगे- सबसे पहले अपने आप को!!
अंत में – आधुनिक ज्ञान को भारतीय आम तबके के लोगों तक- उनकी भाषा में- पहुंचाने का समय आ गया है. इच्छा शक्ति, पूँजी, मेहनत और खुले दिमाग के साथ हम ये सम्भव कर सकते हैं. इससे जन सामान्य का जीवन स्तर ऊँचा होगा, समाज की प्रगति होगी और विश्व में भारत का रुतबा और मज़बूत होगा.
जय हिन्द!
सचीन बापट
Good
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thanks, Kawitavahini.
Who might be working on creating Med School curriculum and content in Hindi or other regional languages? Who else in your field might like to read this?
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Nicely written. As mentioned, private sector support can help this cause.
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Thanks Anil- anyone come to mind, who I should connect with on this?
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Will keep an eye. How about SAP India?
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सचिनजी आपने बहुत गहरे और परिपूर्ण विचार करते हूये ये सोच सबके सामने पेश की है.।
आप के ठोस सुझाव भी बहुत परिणाम कारक है । आप अपना ये प्रस्ताव प्रिय नेता मोदीजी और शिक्षामंत्रीजी के सामने प्रस्तुत किजीये। आज भारत के ग्रामों में जहाँ आगेकी शिक्षा उपलब्ध नहीं है वहाँ प्रायोगिक तौर पे उच्च शिक्षा प्रदान करने के लिये शिक्षालय स्थापित किये जा सकते है । ऐसे होनेसे ग्रामीण विद्यार्थि शहेर जाने और वहाँ रहनेके लिये क़र्ज़ लेनेके लिये मजबूर न होंगे। आगे बढ़कर यही विद्यार्थी अपने ग्राम में अपनी ग्रामीण भाषामें उच्च शिक्षा प्रदान कर सकेंगे और ग्राम में शिक्षा विकास करेंगे।
जो आज विदेशी भाषामें पढ़ा रहे है, वो घर बाहर तो पढ़ाने की अलावा अपनी बोलीहि इस्तेमाल करे है उन्हें उस बोलीमें पढ़ाना बहुत मुश्किल नहीं होगा।
सचिनजी आपको इस काम के पूर्ति के लिये काकाजी और हमारी तरफ़ से शुभकामनायें ।
जयहिंद।
अंजली सोमण
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प्रिय अंजुताई,
आपके आशीर्वाद के लिये शत शत धन्यवाद!
मैं ये विचार मोदीजी को ज़रूर भेजूंगा।
सादर आपका,
सचीन
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